कांग्रेस नेता सूर्य प्रताप सिंह ने अब छोड़ी पार्टी
मेरा मन क्यों बदला?
कल से ही सैंकड़ों मित्रों, शुभचिंतकों के फ़ोन आ रहे हैं,सभी दुखी हैं। कई YouTuber दोस्त इंटरव्यू करना चाहते हैं।
•जब INDIA गठबंधन बना तो लगा कि ये देश के लिए अच्छा विकल्प दे सकते हैं लेकिन पिछले कह माह से देख रहा हूँ कि INDIA गठबंधन में बड़े बड़े अहंकार वाले नेताओं को मेढकों की तरह एक तराज़ू में रखना आसान नहीं।
•गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के कारण मैं कांग्रेस को इसके लिए ज़्यादा ज़िम्मेदार मानता हूँ।
• कांग्रेस ने पहले गठबंधन को साथ लाने वाले नीतीश कुमार को साइड लाइन कर दिया और फिर अपना दायित्व भी निभाने में असफल रहे।
•मुझे लगता है कि कांग्रेस अब नेहरू, इंदिरा की कांग्रेस नहीं अपितु एक परिवार का हित देखने वाली पार्टी बनकर रह गई है। अध्यक्ष चाहे कोई हो, पर्दे के पीछे चलेगी गांधी परिवार की ही।
•कांग्रेस क्या सभी विपक्षी दल बेरोज़गारी व महंगाई जैसे मुद्दों पर कभी सड़कों पर नहीं उतरे। हाँ, राहुल गांधी का बंगला ख़ाली होने पर कांग्रेस जन ज़रूर उतरे। लगा कि इन्हें केवल अपने नेता की सुख सुविधा के लिए आंदोलन करना है, जन समस्याओं के लिए नहीं।
• पिछले कुछ दिनों में मैंने आईना दिखाने की कोशिश कि तो बड़ी विचित्र नकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली। आलोचना सहने का धैर्य नहीं, लगा कि इन्हें भी चमचागिरी ही पसंद है।
•मुझे लगता है कि विपक्ष के पास जन समस्याओं के बेहतर समाधान का विज़न नहीं है। वे केवल मोदी से निजी नफ़रत, ख़ाली मोदी-विरोध से सत्ता पाना चाहते हैं।
इनके बड़े बड़े नेता कोई सकारात्मक बातें नहीं करते। उनकी बातें मोदी विरोध से शुरू और मोदी-विरोध पर ख़त्म हो जाती हैं।
•मुझे नहीं लगता कि विपक्ष, जैसा चल रहा है, उससे बेहतर विकल्प देश को दे सकते हैं। शुरू से ही इतनी खींचतान है तो सत्ता में आने पर क्याहोगा?
• अधिकांश क्षेत्रीय विपक्षी पार्टियाँ देश हित से पूर्व अपने परिवार हित को साधती ज़्यादा नज़र आती हैं।बेरोज़गार युवक सड़कों पर पिटते हैं, विपक्षी नेता AC से बाहर निकलते ही नहीं। बताइये जन समस्याओं को लेकर क्या कोई विपक्षी नेता कभी जेल गया, क्या कभी किसी जनसंघर्ष की अगुवाई की?
• कांग्रेस केवल साउथ इंडिया तक सिमट कर रह गई है। राहुल गांधी अपने लोगों व अमेठी छोड़कर और अब सोनिया गांधी रायबरेली छोड़कर साउथ भाग रही हैं।उन्हें अपने लोगों की नहीं अपने सुख आराम की ज़्यादा चिंता लगती है।
• मैंने लाख समझने की कोशिश की, प्रोत्साहित भी किया लेकिन राहुल गांधी अभी देश को नेतृत्व प्रदान करने वाले धीर गंभीर नेता नहीं बन पाये और कांग्रेस को PM के लिए राहुल ही चाहिए, कोई और नहीं।
• और हाँ, एक बात और कि राम मेरे आराध्य हैं। राम, अयोध्या नगरी या राममंदिर का विरोध मुझे स्वीकार नहीं।इस विषय पर विपक्ष की राय मुझे ढुलपुल दिखाई देती है। कई लोग सत्ता विरोध में राम से भी नफ़रत कर बैठे हैं।
बातें तो बहुत हैं लेकिन लबोलुभाव ये है कि मेरे मत में देश की राजनीति को आज स्थायित्व चाहिए ताकि देश के विकास की गति न रुके।
मेरा परसेप्शन ये है कि INDIA गठबंधन अपने clueless विज़न से मोदी से बेहतर विकल्प नहीं दे सकता।
मैं मानता हूँ कि सरकारों में अहंकार आ ही जाता है लेकिन विपक्षी नेताओं का अहंकार सत्ता पाने पर इससे कम होगा, ऐसा लगता नहीं।
अंत में, INDIA गढ़बंधन में मची उठापटक, ऊहापोह से मेरा मन खिन्न हुआ। न मेरी कोई BJP से डील हुई और न मुझे किसी का डर है। अगर मुझे किसी से डर होता या लालच होती तो पिछले 10 वर्षों से सत्ता केविरुद्ध संघर्ष करता दिखाई न देता।
इधर कुछ दिनों से मैंने INDIA गठबंधन को आईना क्या दिखाया, कई लोगों को बड़ा बुरा लगा।
कई लोग मुझे संघी, पलटी मारने वाला, बिक गया, राज्यसभा सीट, ED का डर, गिरगिट कह खूब भड़ास निकाल रहे हैं।
पहले जब मुझे तमाम लोग, पप्पू भक्त या टोंटी चोर का चमचा कहते थे तो ये ही लोग चुप रहते थे।
क्या कांग्रेसी या अन्य कोई विपक्ष दल वाले बतायेंगे कि उन्होंने तब मुझे कितने में ख़रीदा था? क्या मैंने आप किसी से कुछ माँगा था?
उन्हें बता दूँ कि आज तक तो किसी की मुझे ख़रीदने की हिम्मत हुई नहीं, इतनी ज़िंदगी निकल गई तो अब क्या ख़रीदेंगे।
मुझे विपक्ष या सत्ता पक्ष से कुछ नहीं चाहिए, मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं।
मेरे पास तो इतने बड़े बड़े पूर्व में पद रहे हैं तो मुझे अब किसी पद की क्या लालच होगा?
मैंने तो समय से पूर्व ही IAS जैसी बड़ी नौकरी छोड़ दी थी, VRS ले लिया था।
कुछ लोग कह रहे हैं कि मुझे किसी सरकार ने सस्पेंड या बर्खास्त किया था, ऐसा इस जन्म में तो मेरे साथ हुआ नहीं।
मैंने सदैव अपनी मेहनत, ईमानदारी से ज़िंदगी गुज़ारी है और मैं उससे संतुष्ट हूँ।
जहां तक यह बात कि बदायूँ में मुस्लिम मोहल्ले में किसी नेता को हराने के लिए मैंने लाठी चार्ज करा दिया था, मुझे इस पर बात बहुत हंसी आती है क्यों कि हारने के बाद नेताओं को मुँह छिपाने के लिए प्रशासन पर आरोप लगाना सबसे आसान बहाना है।
बदायूँ में जाकर पूछियेगा कि नेता जी मुलायम सिंह का हेलीकॉप्टर किसने रुकवाया था और आडवाणी जी की रैली किसने होने से रुकवाई थी? चूँकि ये चुनाव अचार संहिता का उल्लंघन था।
मेरी निष्पक्षता के विषय में बदायूँ या नैनीताल के बड़े बुजुर्गों से आज भी पूछ सकते हैं, जहां मैं DM रहा।
जहां तक फ़ॉलोवर्स के घटने बढ़ने का सवाल है, ये न मेरे हाथ में है और न आपके। जिसको मेरी बात अच्छी लगेगी वे ज़रूर सुनेंगे और फॉलो भी करेंगे,उनका आभार।
मेरा मानना है कि राजनीतिक विचारधारा का विरोध अधिक होना चाहिए न कि किसी व्यक्ति विशेष का। हर व्यक्ति में कुछ कमियाँ है तो कुछ अच्छाइयाँ अवश्य होती हैं।
हाँ, राम मेरी आस्था का प्रश्न है इसलिए राम या राममंदिर की आलोचना मुझे स्वीकार नहीं। मैं नास्तिक नहीं हूँ।
विज्ञान व आस्था एक दूसरे के पूरक हैं, ऐसा मेरा मानना है।
मैं आप सभी की भावनाओं की कद्र करता हूँ और करता रहूँगा,आप चाहे जो सोचें।
आशा है, आप सभी मित्रगण मेरी मनःस्थिति की समझेंगे फिर भी आपकी भावनाओं को कोई ठेस पहुँची हो तो मुझे खेद है।