एक अच्छा कलाकार वही होता हैं जो अपने किरदार के साथ बखूबी इंसाफ करें,अगर उसे प्यार करने का किरदार मिले तो वो दर्शकों को प्यार करना सीखा दे और हंसाने का मौका मिले तो हंसा-हंसाकर लोटपोट कर दें.एक ऐसा ही खलनायक था जिसे देख कर लोग डर से पानी -पानी हो जाते थें जिसे असल ज़िंदगी में लोग रामी रेड्डी के नाम से जानते थे
फिल्मों में आने से पहले रामी एक पत्रकार के तौर पर काम किया करते थे, उस्मानिया विश्विद्यालय से उन्होंने पत्रकारिता की पढाई की थीं | फिल्म अंकुशम के स्पॉट नागा से वो लोगो की नज़र में आये उसके बाद “वक्त हमारा है” में कर्नल चिकारा फिर “प्रतिबंध” में अन्ना और दिलवाले, जीवन युद्ध, कालिया, लोहा, क्रोध, सौतेले जैसी फिल्मों में विलेन के किरदार में वो जान फूँक देते थे |
रामी ने तेलुगु, तमिल, कन्नडा, हिंदी और भोजपुरी की लगभग २५० से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया | निर्देशक की पहली पसंद बन चुके रामी विलेन को किरदार को बखूबी निभाते थे | उनका एक डायलॉग काफी मशहूर हुआ था, “टेंशन देने का टेंशन लेने का नहीं ” |
लेकिन जिस रामी रेड्डी की आँखों में आग और चेहरे पर एक क्रोध नज़र आता था अपने ज़िन्दगी के अंतिम समय में उन्होंने लीवर और किडनी की बीमारी से सिर्फ बिस्तर पर दिन निकाल दिए | फिल्में तो दूर की बात हो गयी थीं वो बाहर भी किसी से नहीं मिलते थे |
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बस एक बार वो किसी फिल्म समारोह में नज़र आये थे लेकिन लोग उन्हें पहचान नहीं सके | इसे वक्त की ही मार कह सकते हैं की जिस इंसान से परदे पर लोग इतना डरते थे सामने मिलने पर लोग उसे पहचान तक नहीं पा रहे थे | फिर एक दिन ऐसा आया जब बीमारी ने उन्हें हरा दिया और 14 अप्रैल 2011 को हैदराबाद में उन्होंने अंतिम सांस ली |